अमरुद की बागवानी
समी प्रकार की भूमि पर पैदा होने वाला कठोर प्रवृत्ति का वृक्ष अमरूदविटामिन सी एवं अन्य पोषक तत्वों से भरपूर है।
प्रमुख किस्में :इलाहावादी राफेदा, लखनऊ 49, श्वेता, ललित, एपलकलर (सुखा), रेड फ्लेस्ड ।
जलवायु एवं भूमि :गर्म एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त । पाला वाले क्षेत्रअनुपयुक्त । उपजाऊ गहरी बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी. एच. मान650 के बीच हो तथा जल निकास अच्छा हो सर्वोत्तम होती है।
सामान्यत:हर प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है।
खाद एवं उर्वरक :खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग निम्नलिखित दर से उम्रके अनुसार प्रति वृक्ष प्रति वर्ष करना चाहिए–
आयु (वर्ष) गोबर की खाद (किग्रा) नाईट्रोजन (ग्राम) फॉस्फोरस (ग्राम) पोटाश (ग्राम)
1 10 60 30 60
2 20 120 60 120
3 30 180 90 180
4. 40 240 120 240
5 50 300 150 300
6 या अधिक 60 360 180 360
गोबर की खाद जुलाई में, फॉस्फेरस व पोटाश की पूरी मात्रा फरवरी में तथानाईट्रोजन की आधी मात्रा फरवरी तथा आधी अक्टूबर में देना चाहिए।
रोपण सामग्री का स्त्रोत : किसी विश्वसनीय पंजीकृत पौधशाला से स्वस्थएवं उपयुक्त कलमी पौधे जो भेंटकलम्, पैचबडिंग, स्टूलिंग अथवा क्लेफ्टचश्माविधि से तैयार किये गये हों, लेकर रोपण करना चाहिए । रोपण का
उपयुक्त समय जुलाई - अगस्त है सिंचाई सुविधा होने पर फरवरी – मार्चमें भी रोपण किया जा सकता है | रोपण से एक माह पूर्व 6x6 मीटर कीदूरी पर 60x60x60 सेमी. आकार के गडढ़े खोदकर उसमें 20 - 25 किग्रासड़ी गोबर की खाद गड्ढ़े के ऊपरी सतह की मिट्टी मे 200 ग्राम नीम कीखली तथा 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान धूल प्रति गडढ़े के हिसाब से भरकरगडढ़ा तैयार कर लेते हैं तथा वर्षा होने पर इसी में पौध रोपण करते हैं । वर्षारोपण होते समय रोपण न करें।
सिंचाई निराई-गुडाई :पौधे लगाने के वर्ष में शरद ऋतु में 15 - 20 दिन तथामेंगर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई थाला बनाकर करना चाहिए । अमरूद के तने केपास काफी संख्या में सकर्स निकलते हैं | इनको निराई-गुडाई कर निकालतेरहना चाहिए।
कटाई - छंटाई :पौधे को साधने तथा उचित ढाँचा बनवाने के लिए मई-जूनमाह में कटाई - छंटाई संस्तुति के अनुसार करनी चाहिए । अमरूद में फसलफलन नियन्त्रण हेतु आवश्यक शस्य क्रियाओं को अपनाना चाहिए ।
रोग एवं कीट नियन्त्रण :
प्रमुख रोग :फ्रूटराट, एन्थोकनोज, स्कैब, तना एवं फल कैंकर, उकठा व्याधि ।
रोक थाम :मैंकोजेब (2.5 ग्राम/लीटर पानी) कापर आक्सीक्लोराईड (3 ग्राम/लीटर पानी) का छिडकाव करें । उकठा रोग के रोकथाम हेतु 8 पी. एच. मानसे अधिक वालीमृदामें अमरूद का बाग न लगायें | 20 30 ग्राम कार्बेन्डाजिम10 - 15 लीटर पानी में घोलकर जड़ों में मार्च, जून, सितम्बर व दिसम्बर में डालें।गोबर की खाद में ट्राईकोडर्मी एवं एसपरजिलस कल्चर मिलाकर डालें ।
प्रमुख कीट : फल मक्खी, छाल खाने वाली झल्ली, फल वेधक, मिलीबग ।
रोकथाम :प्रभावित फलों को एकत्र कर नष्ट कर दें । फल मक्खी हेतु अगस्तसितम्बर में वाग की जुताई कर चौढ़े मुँह के वर्तन में 1 मिली. मिथाइल यूजीनाल+ 2 मिली. मैलाथियान प्रति लीटर पानी मे मिलाकर घोल फल आने कीअवस्था में जगह-जगह बागों में लटका दें । कीटों के रोकथाम हेतु पतला तारडालकर छाल में बनी सुरंग को साफ कर मिट्टी का तेल या डाईक्लोरोवास सेभीगा रूई का फाहा सुरंगों में डालकर चिकनी मिट्टी से सुरंगो का बन्द करदें । फल बेधक कीट के रोकथाम हेतु डाईक्लोरोवास 1.4 मिली. /ली. पानी याफास्फेमिडान 0.7 मिली./ली. पानी की दर से घोल बनाकर मार्च-अप्रैल तथादूसरा छिड़काव जून-जुलाई में करें । मिलीवग हेतु अक्टूबर-दिसम्बर में बाग कीजुताई कर मिथाइल पैराथियान धूल 150-200 ग्राम प्रति वृक्ष पेड़ के चारों तरफछिड़काव करें । इसके अलावा क्रिप्टोलाइम्स स्पेसीज के प्रीडेटर 10-12 बीटिलप्रति पेड़ छोड़ने से 30-45 दिन में रोकथाम हो जाती है ।
फल तुडाई एवं उत्पादन :उत्तरी भारत में अमरूद की दो फसलें होती है।एकवर्षाऋतु में एवं दूसरी शीत ऋतु में शीतकालीन फसल के फलों कीगुणवत्ता अधिक होती है । फूल लगने के लगभग 4 से 5 माह बाद फल पककर तोडने के लिए तैयार होते हैं। तीसरे साल में लगभग 8 टन प्रति हेक्टे०उत्पादन मिलता है, जो सातवें वर्ष में 25 टन प्रति हेक्टे0 तक हो जाता है।
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